दहेज क़ानून की आड़ में......
देश में .............????
मनोज विश्वकर्मा- RTI कार्यकर्ता
हमारे देश में दहेज कानून महिलाओं को प्रताड़ना
से बचाने तथा मजबूर औरतों के हालात सुधारने की नियत से बनाये गए थे, समय के साथ इसमें कई बदलाव
करके औरतों के अधिकारों में भी काफी इजाफा किया गया | कुछ दोषी लोगों को सज़ा भी
मिली | जिस मकसद व नियत से दहेज कानून बनाये गए थे उससे औरतों के हालातों में कोई सुधार
नहीं आया, और जिन औरतों को वास्तव में इन कानूनों की जरूरत थी, उनको आज तक भी इन कानूनों
का लाभ नहीं मिला है | उनको हर दिन ऐसे हालातों से गुजरना पड़ता है जिसको देख कर
कोई भी इंसान सोचने पर मजबूर हों जाये | इन औरतों को न तो 3 वक्त की रोटी है, न उनके
लिए शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाए हैं, न शौचालय की सुविधा है | उनको खुले में सौच जाना
पड़ता है | घर के सारे सदस्य ( जिसमे बुज़ुर्ग, स्त्री, पुरुष व बच्चे सभी शामिल है
) अगर काम न करें तो 2 वक्त का खाना नसीब नहीं होता, चाहें वो बीमार
हों, अपाहिज़ हों, तो भी काम करना पड़ता है | छोटे छोटे बच्चे जिन की उम्र स्कूल जाकर
पढ़ने व खेलने की है, उन्हें भी ग्रस्थी का बोझ बाटना पढ़ रहा है | समाज का यह वर्ग
न केवल हर प्रकार की उपेक्षा, बल्कि अनेकों प्रकार के शोषण का शिकार भी है | जब घर
के हालात अच्छे नहीं होंगे, तो घरेलु हिंसा भी होगी, मारा-पीट व गाली-गलोच भी होगी
| यह सब घटनाएँ देश के कोने कोने में, गावं, शहर, क़स्बा, तहसील, जिला, राज्य तथा
महानगरों में देखी जा सकती है | महिला सशक्तिकरण के लाभ की सबसे ज्यादा जरूरत
समाज के इस मजबूर वर्ग को है, जिसको न कोई सरकार, न कोई महिला आयोग / न महिला
कल्याण संगठन / न जिला सरंक्षण अधिकारी / न महिला थाना और न ही कोई अधिकारी गण, इस
ज़मीनी स्तर पर मदद करने आता है ......!!!!!!! क्योंकि ये लोग अच्छी आर्थिक
स्तिथि में नहीं हैं इसलियें रिश्वत नहीं दे सकते और इनकी कोई सरकारी तथा दूसरी
पहुँच भी नहीं होती | कोई भला-इंसान तरस खाकर ही कुछ कार्यवाही कर दे वो अलग बात
है | इसके ठीक विपरीत देश के बहुत कम लोग जो कि उच्च वर्ग श्रेणी में आते हैं,
उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत या तो आती ही नहीं और अगर आ जाये तो पैसे व प्रभाव
के बल पर बड़ी आसानी से बच निकलते हैं |
अब बारी माध्यम वर्गीय लोगों की आती है | समाज
का यह वर्ग सारे नैतिक, सामाजिक, धार्मिक व अन्य कायदे कानूनों का पालन करता है |
इस वर्ग का शिक्षा व आय का स्तर भी ठीक-ठाक होता है | दुर्भाग्यवश यही समाज का वह
हिस्सा है जो दहेज कानून / घरेलु हिंसा कानून तथा महिलओं को दिए गए अन्य अधिकारों
का सबसे अधिक दुरूपयोग कर रहा है | पिछले 8 ~ 10 वर्षों
में जिस प्रकार जरूरतमंद औरतों के लिए बनाये गए कानूनों का दुरूपयोग किया जा रहा
है उसमे 95% प्रतिशत से भी अधिक केस झूठे व निराधार पाए गए है जिनकी मुख्य वजह है ---
1.
गिरते हए सामाजिक व
नैतिक मूल्य
2.
बिना मेहनत के पैसे
का लालच
3.
समाज व परिवार में
निष्पक्ष लोगों की कमी
4.
इस के साथ साथ पुलिस
के भ्रष्ट अधिकारीयों का लालच ( जिस में महिलायों की हिमायत करने वालीं महिला
अधिकारी भी शामिल हैं) तथा
5.
अनैतिक प्रैक्टिस करने
वालें लालची वकील
इन कानूनों का दुरूपयोग करके निर्दोष परिवार के सदस्यों ( जिनमे बुजुर्ग,
बीमार / अपाहिज माता पिता, गर्भवती बहन, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, जेठ-देवर, बहनोई,
भुआ-फूफा तथा स्कूल जाते मासूम बच्चे भी शामिल हैं) को जेल भेज दिया जाता है और
फिर शुरू होता उस परिवार का सामाजिक, मानसिक व आर्थिक शोषण ......!! जिसमे परिवारों
की हालत ठीक उसी प्रकार हों जाती है जैसे रस निकालने के बाद गन्ने की हों जाती है
और छिलका मात्र शेष रह जाता है | शरीफ़ व घरेलू
लोगों को इस तरह जीते जी मरने को मजबूर
करते यह हालात इतने विकट हो चुके हैं कि बहुत से बुजुर्ग माता पिता, जिनके के लिए
कोर्ट व थाने जाना बहुत बड़ी बेइज्जती है, वे यह सदमा सहन न कर पाने के कारण इस
दुनिया से ही चले गए, कईयों ने अपने जवान बेटे खोये, जबकि वधु पक्ष के लोग खुले आम
कानूनी आड़ में लूट-खसूट करने को आज़ाद !
सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गंभीर लेतें हए इसे कानूनी आंतकवाद की संज्ञा दी है जबकि उसी
देश में संसद पर हमला करने वाले, हजारों लोगों को मारने वाले ( जिसके कारण कई
बहने विधवा हुई, बच्चों के सर से पिता का साया उठ गया, बुजुर्ग दादा-दादी का पौता
तथा माँ-बाप का बेटे शहीद हए), ऐसे आंतकियों को हमारी सरकार फांसी की सजा देने
की बजाय उन पर भोली भाली जनता के टैक्स का करोड़ो रुपया, जो किसी अच्छे काम में
लगना चाहिए, उसे बर्बाद कर रही है |
दहेज का केस झूठा साबित हों जाने पर भी हमारे क़ानून में
किसी सजा का प्रावधान नहीं है तथा नाज़ायज रूप से गुजारा भत्ता की मांग की जाती है
| इन सबके के बावजूद वोटों की राजनीति की खातिर, गैर जायज़ सिफारिशें, ये सब चीज़े
कानून दुरूपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए आग में घी का काम कर रही हैं |
इंडिया टुडे पत्रिका के एक सर्वे के अनुसार सन् 2001 से 2006 के बीच दहेज कानून के
दुरूपयोग के चलते 13 लाख लोगों की नौकरिआं गयी, करियर बर्बाद हुआ, वर्तमान की यह
संख्या कम से कम ____ लाख है!!!
हर ___ घंटे में स्कूल जाता बच्चा इस कानून दुरुपयोग के
चलते गिरफ्तार
हर ___ मिनट में कोई न कोई बुजुर्ग गिरफ्तार
हर ___ मिनट में कोई न कोई निर्दोष औरत गिरफ्तार
हर ___ मिनट में कोई एक व्यक्ति गिरफ्तार
15 वर्ष तक के लड़के लड़कियों की
आत्म हत्या की दर बराबर है जबकि 16 से 35 वर्ष तक की आयुवर्ग में हर 9 मिनट में पति आत्महत्या करता है ओर कार्यवाही
शून्य, ओर हर 18 मिनट में एक पत्नी आत्महत्या करती है, इस पर जिसका नाम लिख्वादो वही जेल की
सलाखों के पीछे फेंक दिया जाता है |
और ये सब आंकड़े वर्ष दर वर्ष खतरनाक दर से बढ़ रहें हैं जो
की इक गंभीर खतरे की और संकेत कर रहे हैं- स्त्रोत- नेशनल क्राईम रेकॉर्ड्स
बयूरौ ( वर्ष ______ आंकड़े )
इस समय “महिलाओं के हितों की रक्षा” हेतु बने कानूनों जैसे
( दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, बलात्कार व तलाक सम्बन्धी कानून ) की आड़ में होने
वालीं घटनाएँ व कार्यवाही एक बहुत बड़ा व्यापर व कारोबार बन चुकी है जिसमे झूठा केस
दर्ज़ करने को वकील उक्सातें हैं, महिला सेल से लेकर पुलिस अधिकारी तक वधु पक्ष को
खुश करने के नाम पर अधिक से अधिक पारिवारिक सदस्यों को लपेटने की कोशिश करती है
तथा गिरफ्तार करने की, तुरंत व मनचाही कार्यवाही के नाम पर औरत पक्ष से पैसा
वसूलती है, इस बात का नाजायज़ फायदा हठ कर, लोगों की भावनाएं भड़का कर कि हम जेल
करवा देंगे, वकील भी अपना पैसा बना जातें है और नया केस लड़ने को मिला सो अलग |
अब एक बार गिरफ्तार करने के बाद फिर शुरू होता है - वर पक्ष के शोषण का सिलसिला | 2~4 दिन में जमानत होते ही वधु
पक्ष राजीनामे के लिए फोन करके अपनी शर्तें सुना देता है जिसमे रूपये, मकान या
प्रोपर्टी अपने नाम करवाने की शर्तें मुख्य रूप से शामिल होती हैं | अब पुलिस भी
मौका देख कर वर पक्ष की आर्थिक हालत पर नज़र रखते हए सहानुभूति का स्वांग करती है
ताकि चालान से नाम काटने के नाम पर इनको पैसा मिल सके |
देश का आम आदमी
धीमी व थक चुकी न्याय प्रक्रिया से बचने के लिए, काम-धंधे के चोपट होने के
डर तथा घर की सुख शान्ति की खातिर रिश्वत देकर पीछा छुड़ाने में ही अपनी भलाई समझता
क्यूंकि हमारे देश में न्याय पाना बहुत टेढ़ी खीर है और अगर मिलता भी है तो 20 ~ 25 वर्षों तक लुटने के बाद ! तब तक उस न्याय की अहमियत ही खतम
हों जाती है | क्योंकि परेशान करने के लिए वधु पक्ष इतना सब करने के बाद भी, गुजर
भत्ता को हथियार के रूप में प्रयोग करने से नहीं चूकता | चाहें हालत जायज़ हों या
नाजायज़, कोर्ट भी औरत के हक में ही गुज़ारा भत्ता की मांग को जायज़ मानता है | वोटों की राजनीति के चलते महिला आयोग की, जायज़ कारण व निष्पक्ष भूमिका को ताक
पर रख कर सिर्फ इक पुत्रवधु/ बहू को खुश करके अपना स्वार्थ साधने की नियत से की
जानेवाली सिफारिशें आग में घी डालने का काम कर रहीं हैं | अच्छी भली पढ़ी लिखी औरतों
को मेहनत करके घर चलाने में सहयोग करने को प्रोत्साहित करने की बजाए जानबूझ कर
मुफ्तखोरी को बढ़ावा दे रहीं है, जबकि वास्तव में जरूरतमंद औरतें अपाहिज, लाचार व
बीमार होते हए भी घर चलाने के लिए भी मेहनत करती हैं | ऐसी औरतों की परेशानियाँ कम
करने के लिए न तो महिला आयोग ( जिसका सालाना 12000 करोड़ रुपया खर्च है ), न ही सरकार कुछ करने की कोशीश कर रहे हैं | समाज व घर
को चलाने के लिए आदमी व औरत दोनों की जरूरत है | एक - दूसरे के सहयोग से ही घर
स्वर्ग बनता है, नफरत फैला कर नहीं !!!
अगर हम वर्तमान हालातों पर गौर करे तो ज्यादातर महिला कल्याण संघटन, महिला
आयोग और महीलाओं की हिमायत करने वाली महिला सेल, जिला सरंक्षण अधिकारी, सरकारी
अफसर, पुलिस, वकील, जिनमे से कुछ ईमानदार लोगों को अपवाद मान कर छोड़ दिया जाये तो
बाकी सब महिला सशक्तीकरण के जोश में होश गायब करके, धरातल से उठा कर आसमान का एक
काल्पनिक सपना दिखाने का काम करते हैं | झूठा केस करने के बाद जोश में, हवा में
आकर जब घर बर्बाद हों जाता है और कुएं में गिरने का वक्त आता है तब वही औरत जिसको
सारी दुनिया के अधिकार व शक्तियां अपनी मुट्ठी में दिखते थे अब अपने माता पिता के
साथ अकेली दिखाई पड़ती है | अब सशक्तिकरण की वास्तविकता समझ में आती है, सब अपना-2 काम निकल कर भाग जातें हैं और तब तक साथ रहने के सारे रस्ते बंद हों चुके
होते हैं | माँ बाप भी एक दिन साथ छोड़ देतें हैं और जिंदगी की कड़वी सच्चाई का
सामना करना पड़ता है | अगर आपको मेरी बात पर विशवास न हों तो आप 2 दिन किसी FAMILY COURT के बहार खड़े होकर ऐसे लोगों के अनुभव
से सीख ले !!!!
आधुनिकता की इस चमक-धमक में हमारी कुछ पढ़ी-लिखी युवतिया, पाश्चत्य संस्कृति की
होड़ कर रही हैं, लेकिन अच्छी बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा | वहां के औरत और
पुरुष आज़ाद रहते हैं, लेकिन दोनों बराबर की मेहनत भी करते हैं, वहाँ की औरते किसी
पुरुष पर बोझ बन कर नहीं रहतीं | वहाँ के बच्चो को वह प्यार नहीं मिल पाता, जो एक
हिन्दुस्तानी दम्पति दे सकता है | पति-पत्नी के बीच उतना भावनात्मक लगाव नहीं होता
| वहां पति-पत्नी जिंदगी में अनेकों बार अपने नए साथी चुनते हैं, जबकि हमारी
संस्कृति में हम जीवन साथी एक ही बार चुनते हैं | पश्चिमी देशों के लोग हमारी
संस्कृति को अपना रहें ताकि बच्चो के साथ माता-पिता का लगाव बढ़े | इसके विपरीत
हमारे देश में शादी के वक्त वधु पक्ष की कुछ प्रबल चाह्तें, जैसे की ---
҉ “ उनकी बेटी को अच्छा से
अच्छा घर जिसमे धन-दौलत व सुख-सुविधाएँ अधिक से अधिक हों |
҉ चाहें बेटी काबिल न हों तो
भी वर सर्वगुण संपन्न, खूब पढ़ा-लिखा, बड़ी नौकरी या व्यापार करता हो |
҉ माता पिता की बहुत सारी
जमीन जायदाद हो और घर में माता पिता की प्रोपर्टी का हिस्सेदार या दावेदार सदस्य
तो परिवार में हो ही ना |
҉ लड़के की बहन भी ना हो
क्योंकि समय-2 पर सामाजिक फ़र्ज़ बेटी को
निभाने पड़ेगे |
҉ माता पिता ना हो तो कहने
ही क्या !!! ताकि उनकी सेवा का झंजट ही खत्म |
जबकि उसी बेटी के माता-पिता अपने बेटे की शादी करते वक्त यह उम्मीद करते हैं
की पुत्रवधु घर में आयेगी, घर में खुशियाँ आएँगी, पोता-पोती खेलने को होंगे और
बुढ़ापे में बहू उनकी सेवा करेगी |”
वधु पक्ष के कुछ स्वार्थी व लालची लोगों ने अपनी उपरोक्त इच्छाओं की पूर्ती के
लिए ही शादियों में झूट बोलने की प्रवृती को बढ़ावा तथा झूठे केसों का सहारा लेना
शुरू कर दिया | स्वार्थ के वशीभूत होकर ये लोग यह भी भूल जाते हैं कि – रिश्तों
में प्यार, विश्वाश, समर्पण व सुख-दुःख में एक-दूसरे के काम आना ---- कभी भी स्वार्थ या नफरत से नहीं
मिलतें .......................................!!!!!!!!!!!!
इन सब के लिए निस्वार्थ होना बहुत जरूरी है | ऐसा कैसे हो सकता है कि आपकी
बेटी को तो घर में कुछ भी न करना पड़े जबकि आपके घर आने वाली पुत्रवधु/बहू से वो सब
उम्मीदें हो !!!!!!
इस विषय पर लोगों को स्वार्थ छोड़ कर वास्तविकता के धरातल पर आकर विचार करना
चाहिए | एक पिता अपनी बेटी को अपनी सम्पति में हिस्सा देना नहीं चाहता जबकि वह उसे
सुसराल की संपति की मालकिन बनी देख कर हर्षित होता है | आज भी बहुत कम ऐसे
माता-पिता हैं जो कि अपनी बेटियों कि जिंदगी/भविष्य को सफल बनाने के लिए खुले दिल
से पढ़ाई-लिखाई पर पैसा खर्च करते हैं | अधिकतर लोग कोई न कोई बहाना बना कर इस
ज़िम्मेदारी से बचना चाहते हैं | अगर बेटी भी बराबर कि पढ़ी लिखी होगी तो पति-पत्नी
की समझ में अंतर कम से कम होगा, मुफ्तखोरी की आदत व विचार को छोड़ कर घर चलाने के
लिए बराबर की मेहनत करेंगी, गृहस्थी बसाने की सोचेंगी !!!!
उर्जा व समय को अच्छे कार्य में लगाया जायेगा तो घर में सुख शान्ति रहेगी,
खुशहाली व समृद्धि का माहोल होगा, बच्चो की परवरिश अच्छे ढंग से होगी | बच्चो में
अच्छे संस्कार डालने में माता पिता के इलावा बुजुर्गों का बहुत बड़ा योगदान होता है
| जब संस्कार, नैतिकता, चरित्र मजबूत होंगे तो, न किसी का बलात्कार होगा, न किसी
बेटी का घर बर्बाद होगा | युवा वर्ग जिसके पास रचनात्मक उर्जा है, उसका सदुपयोग
करेंगे तो इससे देश का भी लाभ होगा ............!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
इन कानूनों के दुरूपयोग के मैंने ऐसे केस भी देखे हैं, जिनमे घर का जवान
शादीशुदा बेटा किसी दुर्घटना/ असाध्य बीमारी जैसे कैंसर के कारण छोटे छोटे बच्चों
को छोड़ कर चले गए | मरने के बाद 12 दिन भी नहीं बीते कि
कुछ लोग स्वार्थ व लालच के वशीभूत होकर घर के सास-ससुर/ जेठ को
प्रोपर्टी व पैसा उस औरत के माध्यम से नाम करवाने कि शर्त करदी !!! ऐसा ना करने कि
दशा में दहेज का झूठा केस तथा अवैध सम्बन्ध बनाने को मजबूर करने के केस कि धमकी |
कोई भी समझदार इंसान ऐसे वक्त में घर के हालातों कि कल्पना कर सकता है लेकिन लोग
लालच के वशीभूत होकर इतना गिर गएँ हैं | क्या उस पत्नी का पति से नाता, उस औरत के
माता पिता व अन्य सदस्यों का नाता सिर्फ पैसे/प्रोपर्टी के लिए ही था ???? उस
बुज़ुर्ग माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों पर क्या गुजरती होगी ????? क्या ऐसी
माँ / नाना-नानी उन बच्चो के ( जिनके सर से बे-वक्त पिता का साया उठ गया ) सच्चे
हितेषी हो सकते हैं ????? कभी भी नहीं !!!!!!!!!!!!!
ऐसे एक ही नहीं अनेकों केस हैं जिनमे इंसानियत का भद्दा मजाक उड़ाया जाता है |
इस हद तक दुरूपयोग के बावजूद हमारी सरकार जाग नहीं रही !!!!! क्या महिला आयोग कि
ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि कुछ ऐसे कदम उठाये तथा इन कानूनों में झूठे केस करने वालों
पर कठोर सज़ा व भारी जुर्माने का प्रावधान करें ताकि ऐसे हालातों कि शिकार औरतों की
तरह प्रताड़ना किसी ओर औरत को झेलनी न पड़े
.....................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
इस समस्या के समाधान के लिए सरकार कभी भी कदम नहीं उठाएगी क्योंकि बड़े राजनेता
व महिलाये इस समस्या कि शिकार नहीं है, इसलिए इस दर्द व बर्बादी का ऐहसास उन्हें
नहीं है | ज्यादातर लोग वर्तमान राजनीति में केवल पैसे के दम पर आते हैं, उन्हें
आम जनता की समस्याओं के कोई लेना देना नहीं होता| जिन औरतों का इस चक्कर में घर
बर्बाद होता है वे भी मध्यम वर्ग की ही होती हैं | महिला आयोग से लेकर महिला
कल्याण संगठन तक, कोई भी इस आम औरत को बर्बादी से बचाने के लिए, बच्चों व
बुजुर्गों को इस प्रताड़ना से बचाने के लिए ( सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय तथा अन्य
न्यायधीशों की पहल को छोड़ कर ), समाज परिवार के बिगड़ते रिश्तों को बचने के लिए आगे
आना तो दूर कोई इस दिशा में प्रयास करता नहीं दिख रहा | इन कानूनों में समुचित
बदलाव की सख्त जरूरत है ताकि लोग उस का दुरूपयोग करने से डरे | जो सम्बंधित सुझाव
हैं, वे हैं ---
1.
जब तक कोई आरोप सिद्ध न हो
जाए तब तक कोई गिरफ्तारी न हो और न ही गुजरा भत्ता दिया जाये|
2.
गुजरा भत्ता की सीमा तय की
जाये तथा विवाह में पत्नी के योगदान के अनुसार गुजरा भत्ता की अलग अलग श्रेणिया तय
की जाये|
3.
जिस प्रकार 15 साल तक नौकरी करने के बाद
ही सरकार व्यक्ति को पेंशन देती है उसी प्रकार जो पत्नी पति के साथ कम से कम 15 साल तक रहे उसी को ही
सम्पति में हिस्सा दिया जाये.
4.
वैवाहिक सम्बन्धी सभी केसों
को परिवार के अन्य सदस्यों की प्रताड़ना को देखते हुए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में ही
सुनवाही की जाये|
5.
पिता को बच्चे से मिलने के
अधिकारों से रोक हटाई जाये|
6.
झूठे दहेज, घरेलु हिंसा एवं
बलात्कार के केसों को रोकने के लिए औरत को भी सज़ा दी जाये व उन पर भी भारी
जुर्माने का प्रावधान किया जाये|
7.
जो लडकिय दूसरी या तीसरी
बार शादी करें, उन को किसी प्रकार का गुजरा भत्ता न दिया जाये|
कानूनों में समुचित बदलाव करने से दुरूपयोग पर लगाम लगेगी,
निर्दोष लोगों की आत्महत्या की दर घटेगी, लोगों का समय, उर्ज़ा व धन अच्छे कार्यों
में लगेगा | देश की अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुंचेगा | इसके लिए हम ओर आप जैसे
पीड़ित लोगों को ही आगे आना पड़ेगा, लोगों में जागृति का संचार करना पड़ेगा ताकि अपने
अनुभव व उर्ज़ा को रचनात्मक कार्यों में लगा सकें | छोटे छोटे बच्चों को घर के सभी
सदस्यों का प्यार व अच्छे संस्कार मिल सकेंगे | -----------------------------------------------------मनोज
विश्वकर्मा -RTI कार्यकर्ता
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